मुंबई, 26 सितंबर। बॉलीवुड के महान फिल्म निर्माता यश चोपड़ा का नाम आज भी बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। उनकी फिल्मों में एक्शन और ड्रामा के बजाय मोहब्बत की गहराई को प्रमुखता दी गई। उन्होंने कई यादगार फिल्में बनाई, लेकिन एक विशेष पहलू ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। स्विट्जरलैंड को उन्होंने अपनी फिल्मों में इस तरह प्रस्तुत किया कि वह भारतीयों के लिए एक रोमांटिक डेस्टिनेशन बन गया।
यश चोपड़ा का जन्म 27 सितंबर 1932 को लाहौर में हुआ था। बचपन में पढ़ाई में अव्वल रहने वाले यश इंजीनियर बनने का सपना देख रहे थे और इसके लिए लंदन जाने की योजना बना रहे थे। लेकिन किस्मत ने उन्हें फिल्म इंडस्ट्री की ओर मोड़ दिया। वह अपने बड़े भाई बीआर चोपड़ा के पास मुंबई आए और सहायक निर्देशक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। 1959 में, उन्होंने अपनी पहली फिल्म 'धूल का फूल' का निर्देशन किया, जिसने उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में पहचान दिलाई।
धीरे-धीरे, यश चोपड़ा ने कई सफल फिल्में बनाईं और दर्शकों के दिलों में जगह बनाई। उनकी क्लासिक फिल्मों में 'दीवार', 'त्रिशूल', 'कभी-कभी', 'सिलसिला', 'डर', 'इत्तेफाक', और 'लम्हे' शामिल हैं। इन फिल्मों में उन्होंने न केवल गहरी कहानियाँ प्रस्तुत कीं, बल्कि ऐसे किरदार भी बनाए जो आज भी याद किए जाते हैं। यश चोपड़ा की फिल्मों में प्यार को एक एहसास के रूप में दर्शाया गया।
1980 और 90 के दशक में, जब अधिकांश फिल्में एक्शन से भरी थीं, यश चोपड़ा ने रोमांस को फिर से जीवित किया। उनकी फिल्म 'चांदनी' ने दर्शकों को सादगी और मोहब्बत की दुनिया में वापस लाया। इस फिल्म की शूटिंग का एक बड़ा हिस्सा स्विट्जरलैंड में हुआ, जिससे यश चोपड़ा का वहां के प्रति प्रेम बढ़ा और उन्होंने कई फिल्मों की शूटिंग वहीं की।
यश चोपड़ा ने स्विट्जरलैंड की खूबसूरत वादियों को अभिनेत्रियों की सफेद साड़ियों और रोमांटिक गानों के साथ इस तरह पेश किया कि वह भारतीयों के लिए एक सपने जैसा स्थान बन गया। उन्होंने वहां के बर्फीले पहाड़ों और शांत झीलों को इतनी खूबसूरती से फिल्माया कि स्विट्जरलैंड की सरकार ने उन्हें सम्मानित करते हुए उनके नाम पर एक सड़क बनाई। इसके अलावा, 'यश चोपड़ा एक्सप्रेस' नाम की एक ट्रेन भी चलाई गई और इंटरलेकन में उनकी 250 किलो की कांस्य प्रतिमा स्थापित की गई। यह किसी भारतीय फिल्म निर्देशक को मिला सबसे अनोखा अंतरराष्ट्रीय सम्मान था।
यश चोपड़ा की सफलता केवल फिल्मों तक सीमित नहीं रही। उन्होंने 1973 में यशराज फिल्म्स की स्थापना की, जो आज हिंदी सिनेमा की सबसे बड़ी प्रोडक्शन कंपनी बन चुकी है। उनके बेटे आदित्य चोपड़ा ने इस विरासत को आगे बढ़ाया और 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' जैसी आइकॉनिक फिल्म बनाई। यश चोपड़ा ने शाहरुख खान के साथ मिलकर 'डर', 'दिल तो पागल है', और 'जब तक है जान' जैसी फिल्में बनाई, जिनमें रोमांस का एक नया रंग देखने को मिला।
यश चोपड़ा को सिनेमा में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें छह राष्ट्रीय पुरस्कार और आठ फिल्मफेयर अवॉर्ड्स शामिल हैं। 2001 में उन्हें 'दादासाहेब फाल्के पुरस्कार' और 2005 में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें दुनिया भर के फिल्म समारोहों से भी लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड्स प्राप्त हुए।
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